Page 1 :
4. नीचे दी गई कविता की पंक्तियों को सामान्य वाक्य में बदलिए।, , (क) एक दिन जब था मुंडेर पर खड़ा , (ख) लाल होकर आँख भी दुखने लगी , (ग) ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी , (घ) जब किसी ढब से निकल तिनका गया , उत्तर:- (क) एक दिन जब मैं अपनी छत की मुंडेर पर खड़ा था।, , (ख) आँख में तिनका चले जाने के कारण आँख लाल होकर दुखने लगी।, (ग) बेचारी ऐंठ दबे पावों भागी।, , (घ) किसी तरीके से आँख से तिनका निकाला गया।, , 2. 'एक तिनका' कविता में किस घटना की चर्चा की गई है, जिससे घमंड नहीं करने का संदेश मिलता है?, , उत्तर:- 'एक तिनका' कविता में 'हरिऔध' जी ने उस समय की घटना का वर्णन किया है, जब कवि अपने-आप को सबसे श्रेष्ठ, समझने लगा था। उसके इस घमंड को एक छोटे से तिनके ने चूर-चूर कर दिया। उस छोटे से तिनके के कारण कवि की नाक में दम, हो गया था।उसकी आँख लाल होकर दुखने लगी। उस तिनके को निकालने के लिए कई प्रयास किए गए और जब किसी तरीके से, वह तिनका निकल गया तब कवि को समझ में आया कि उसका अभिमान तोड़ने के लिए एक छोटा तिनका भी बहुत है। अत: कवि, और तिनके के उदाहरण द्वारा इस कविता में हमें घमंड न करने की सीख दी गई है।, , 3. आँख में तिनका पड़ने के बाद घमंडी की क्या दशा हुई?, उत्तर:- आँख में तिनका पड़ने के बाद घमंडी की आँख दर्द के कारण लाल हो गई,आँसू बहने लगे, वह बैचैन हो उठा और किसी भी, तरह से आँख से तिनका निकालने का प्रयत्न करने लगा।, , 4. घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने क्या किया?, उत्तर:- घमंडी की आँख से तिनका निकालने के लिए उसके आसपास के लोगों ने कपड़े की मूँठ बनाकर उसकी आँख पर लगाया, और तिनका निकालने का प्रयास किया।, , 5. 'एक तिनका' कविता में घमंडी को उसकी 'समझ' ने चेतावनी दी एऐंठता तू किसलिए इतना रहा,, एक तिनका है बहुत तेरे लिए।, , इसी प्रकार की चेतावनी कबीर ने भी दी है , तिनका कबहूँ न निंदिए, पाँव तले जो होय।, , कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय।।, , इन दोनों में क्या समानता है और क्या अंतर? लिखिए।, , उत्तर:- इन दोनों काव्यांश में यह समानता है कि दोनों में ही तिनके के उदाहरण द्वारा यह समझाने का प्रयास किया है कि एक छोटासा तिनका भी मनुष्य को परेशानी में डाल सकता है।, , इन दोनों काव्यांश में यह अंतर है कि जहाँ कवि हरिऔधजी जी ने हमें स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानकर घमंड न करने की सीख दी है वहीँ, कबीरजी ने हमें किसी को भी तुच्छ न समझने की सीख दी है अर्थात किसी को अपने से कम समझ कर उसकी निंदा नहीं करनी, , चाहिए।, ८ जाए