Assignment Details
Sanskrit
(ख) कथात्मक पाठ 1. अलसकथा 1. चारों आलसियों का सम्वाद अपने शब्दों में लिखें। उत्तर- अलसशाला में आग लगने पर भी चार आलसी लोग भागने के बजाए परस्पर वार्तालाप कर रहे थे। एक ने कपड़े से मुख ढक कर कहा—अरे कोलाहल कैसा? दूसरे ने कहा लगता है कि इस घर में आग लग गई है। तीसरे ने कहा— कोई भी ऐसा धार्मिक नहीं है जो इस समय पानी से भींगे वस्त्रों से या चटाई से हमलोगों को बैंक दें। चौथे ने कहा—अरे वाचालों कितनी बातें करोगें? 2.अलसशाला में आग क्यों लगाई गई? उत्तर- आलसियों के सुख को देखकर धूर्त लोग कृत्रिम आलस दिखाकर भोजन करने लगे जिससे अलसशाला में बहुत धन का व्यय होता देखकर नियुक्त पुरुषों के द्वारा आलसी पुरुषों की परीक्षा हेतु आलसियों के घर में आग लगाई गई। 3. अलसशाला के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों ली ? उत्तर- अलसशाला में आलसियों की सुख-सुविधाओं को देखकर कम आलसी एवं कृत्रिम आलसियों की भीड़ जुट गई थी जिससे अलसशाला का खर्च बेवजह बढ़ गया था। अतः अलसशाला के व्यर्थ खर्च को रोकने तथा सही आलसियों की पहचान के लिए अलसशाला के कर्मचारियों ने आलसियों की परीक्षा ली। इस परीक्षा से उन्होंने सही आलसियों को चुन निकाला। 4.'अलसशाला के कर्मियों ने आलसियों को आग से कैसे और क्यों निकाला ? उत्तर- अलसशाला में आलसियों को आग से जलकर मर जाने के भय से चारों 5. आलसियों को बाल पकड़कर खींचते हुए बाहर निकाले । 'अलसकथा' पाठ में किसका वर्णन है? उत्तर-' अलसकथा' पाठ में आलस्य का त्याग करने की शिक्षा दी गई है। मानवीय गुणों पर प्रकाश डाला गया है। दोषों से मुक्ति पाने की शिक्षा भी दी गई है। मानव शरीर में आलस्य से बढ़कर कोई भी शत्रु नहीं है। 6.'अलसकथा' पाठ में वास्तविक आलसियों की पहचान कैसे हुई? उत्तर- आलसी लोगो के सुख को देखकर धूर्त लोग भी छल से भोजन प्राप्त करने लगे। धूर्त लोगों की पहचान के लिए सोये हुए आलसियों के घर में आग लगा दी, धूर्त्त लोग घर में आग देखकर भाग गये। 7. अलसशाला में आग लगने पर क्या हुआ? उत्तर— अलसशाला में आग लगने पर आग को बढ़ते देखकर सभी धूर्त लोग भागे गये । इसके बाद कुछ आलसी लोग भी भाग गये। 8. अलस कथा का सारांश लिखें। सभी धूर्त लोग भागे उत्तर- अलस कथा में मानवीय गुणों के महत्त्व एवं आलसियों की स्थिति का वर्णन किया गया है। इसमें मंत्री वीरेश्वर की दानशीलता का विस्तार से वर्णन है। वीरेश्वर गरीबों, अनाथ, असहायों में आलसियों को इच्छानुकूल भोजन आवास एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान करता है। लेखक के अनुसार इस संसार में आलसियों का जीवन सबसे अधिक कष्टकर है। वह अपनी ही नहीं जान जाने की स्थिति में भी हाथ पैर नहीं हिला सकते हैं। इनका जीवन भूख दयावानों पर ही निर्भर है। उनके बिना आलसी अपने जीवन की रक्षा नहीं मिटने कर सकते हैं। इसलिए नीति-शास्त्रों में आलस्य को मनुष्य का शत्रु कहा गया है। अतः हमें सदा आलस्य का त्याग करना चाहिए। 9. 'अलस कथा' पाठ के आधार पर बताइए कि आलसी पुरुषों को किसने और क्यों निकाला ? उत्तर—मिथिला का मंत्री वीरेश्वर था। विद्यापति रचित 'पुरुष परीक्षा' से संकलित अलसकथा में आलसियों की परीक्षा हेतु अलसशाला के कर्मचारियों ने अलसशाला में आग लगा दी थी। अलसशाला में आग के भयावह प्रकोप को देखकर सभी कृत्रिम आलसी भाग गये परंतु जो चार असली आलसी थे, वे नहीं भागे। यह देखकर अलसशाला के कर्मचारियों ने सोचा कि अब यदि इन्हें नहीं निकाला जाएगा तो ये सब आग में जलकर राख हो जायेंगे और इनकी हत्या के दोषी हमलोग ही होंगे। अतः उन चारों आलसियों को अलसशाला के कर्मचारियों ने आग से बाहर निकाला। 10. किनकी क्या-क्या गति होती है? पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। Ans. पाठ के अंत में एक श्लोक आया है, जिसमें स्त्री, बच्चे और आलसी के गति का उल्लेख है। कहा गया है कि स्त्रियों का रक्षक पति होता है, बच्चों का रक्षक माँ होती है तथा आलसियों का रक्षक दयावान पुरुष के अतिरिक्त संसार में कोई नहीं होता है। 11.अलसकथा में 'सुखों का मूल' किसे कहा गया है? उत्तर-पाठ में सुखों का मूल संगठन को कहा गया है। सभी लोग मुफ्त में सुख पाना चाहते हैं। कौन ऐसा जीव है जो अपनी जाति का सुख देखकर न दौड़ता हो। आलसी का स्वांग रचकर भोजन-वस्त्र आदि प्राप्त करते हैं। जब उनके आलस का परीक्षा ली जाती है तब उनका भेद खुल जाता है। 12. विद्यापति ने अलस कथा में आलस्य के बारे में क्या कहा है? उत्तर-विद्यापति ने कहा है कि जो बिना परिश्रम के सुखी रहना चाहते हैं और भाग्य भरोसे जीना चाहते हैं। वे लोग हमेशा भाग्य को ही दोषी मानते हैं। इसलिए नीतिकार आलस्य को महान शत्रु कहा है। आलस्य को त्यागकर परिश्रम करना चाहिए। अन्यथा यह जीवन दूसरों पर आश्रित हो जाएगा। 13. “नालसानां गतिः कारुणिकं बिना” क्यों कहा गया है? उत्तर-संसार में विभिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। उनमें कोई परिश्रमी तो कोई आलसी भी होता है। माला में जैसे विभिन्न फूल होते हैं उसी प्रकार भगवान के इस दुनिया में विभिन्न प्रकार के लोग हैं। इसी में आलसी भी जीवन निर्वाह करता है। उसका पालन पोषण कारुणिक व्यक्ति ही करते हैं। सच ही कहा गया है कि ईश्वर सबका रक्षक है। 14. “शरीरस्थो महान रिपुः" के अर्थ को तीन वाक्यों में स्पष्ट करें। उत्तर- मनुष्य के शरीर में सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। किसी व्यक्ति के शरीर में जब तक यह शत्रु निवास करता है, तब तक उसका जीवन सफल नहीं हो सकता है। अतः आलस्य को शत्रु तथा परिश्रम को बन्धु समझने वाले व्यक्ति का ही जीवन हमेशा सुखी रहता है।
Deadline
Dec 06, 11:59 PM
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Question type
Subjective