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(४8$४ एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर, (८1955 12 समाजशास्त्र, पाठ-14 सामाजिक आंदोलन, , 1. निम्न पर लघु टिप्पणी लिखें, » महिलाओं के आंदोलन, *» जनजातीय आदोलन, , उत्तर - महिलाओं के आदोलन - 20वीं सदी की शुरुआत में महिलाओं के बहुत से संगठन सामने आए। इनमें विपेंस इंडियन, एसोसिएशन (५1७-1917), नेशनल काउंसिल फॉर विमेन इन इंडिया - (7८५४1-1925), ऑल इंडिया विमेंस कॉफ्रेंस (५1५४८1926) शामिल हैं। यह देखा गया कि केवल मध्यम वर्ग ही शिक्षित महिलाएँ ही इस प्रकार के आंदोलनों में शरीक होती हैं। लेकिन, संघर्ष का एक भाग महिलाओं की सहभागिता के विस्मृत इतिहास को याद करना रहा है। औपनिवेशिक काल में जनजातीय तथा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारंभ होने वाले संघर्षों तथा क्रांतियों में महिलाओं ने पुरुषों के साथ भाग लिया। न केवल शहरी महिलाओं ने बल्कि, ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्रों की महिलाओं ने भी महिलाओं के सशक्तिकरण वाले राजनीतिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा, लिया। 1970 के दशक के मध्य में भारत में महिला आंदोलन का दूसरा चरण की लहर शुरू हुईं | उस काल में स्वायत्त महिला, आन्दोलनों में वृद्धि हुई। इसका अर्थ यह हुआ कि इस प्रकार के महिला आंदोलन राजनीतिक दलों अथवा उस प्रकार के महिला, संगठन जिनके राजनीतिक दलों से संबंध थे, स्वतंत्र थे।, , शिक्षित महिलाओं ने सक्रियतापूर्वक ज़मीनी राजनीति में हिस्सा लिया। इसके साथ ही उन्होंने महिला आंदोलनों को भी प्रोत्साहित, किया। महिलाओं से संबंधित नए मुद्दों पर अब ध्यान केंद्रित किए जाने लगे-जैसे, महिलाओं के ऊपर हिंसा, विद्यालयों के फार्म पर, पिता तथा माता दोनों के नाम; कानूनी परिवर्तन, जैसे-भूमि अधिकार, रोजगार, दहेज तथा लैंगिक प्रताड़ना के विरुद्ध अधिकार, इत्यादि। इसके उदाहरण हैं, मथुरा बलात्कार कांड (1978) तथा माया त्यागी बलात्कार कांड (1980)। दोनों के ही खिलाफ, व्यापक आंदोलन हुए। अतएव यह बात भी स्वीकार की गई है कि महिलाओं के आंदोलनों को लेकर भी विभिन्नता रही है। महिलाएँ, विभिन्न वर्गों से संवद्ध होती हैं। अत: इनकी आवश्यकताएँ तथा चिंताएँ भी अलग-अलग होती हैं।, , जनजातीय आदोलन - ज़्यादातर जनजातीय आदोलन मध्य भारत के तथाकथित "जनजातीय बेल्ट' में स्थित रहे हैं। जैसे संथाल,, ओरांव तथा मुंडा जो कि छोटानागपुर तथा संथाल परगना में स्थित हैं। झारखंड के सामाजिक आंदोलनों के करिश्माई नेता बिरसा, मुंडा थे, जो एक आदिवासी थे तथा जिन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध एक बड़े विद्रोह का नेतृत्व किया। उनकी स्मृतियाँ अभी भी जीवित हैं, तथा भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस शिक्षित वर्ग ने अपनी अपनी पहचान, जातिगत जागरूकता, संस्कृति तथा परापराओं, को विकसित किया। दक्षिण बिहार के आदिवासियों को अलग-अलग कर दिए जाने का बोध हुआ। उन्होंने अपने सामान्य प्रतिद्वंद्वीदिकू, प्रवासी व्यापारियों तथा महाजनों को माना। सरकारी पदों पर विराजमान आदिवासियों ने एक बौद्धिक नेतृत्व का विकास किया, तथा पृथक राज्य के निर्माण में चलाए जा रहे आदोलनों को गति प्रदान किया। झारखंड आंदोलनकारियों के प्रमुख मुद्दे थे, * सिंचाई परियोजनाओं के लिए भूमि का अधिग्रहण।, *« क्रणों की उगाही, लगान तथा सहकारी क्रणों का संग्रह, वन्य उत्पादों का राष्ट्रीयकरण इत्यादि। जहाँ तक पूर्वोतर राज्यों के
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आदिवासियों की बात है, इनके प्रमुख मुद्दे थे-अपने क्षेत्र में पृथक जनजातीय पहचान, जनजातियों की पारंपरिक स्वायत्तता, प्रदान करने की माँग इत्यादि। किसी कारण वश के कारण ये जनजातियाँ भारत की मुख्यधारा से पृथक रह गई। इस खाई, को पाटने की आवश्यकता है।, , « सर्वेक्षण तथा पुनर्वास की कार्यवाही, बंद कर दिए गए कैंप आदि।, , * वनों की ज़मीन के खोने से जनजातियों के गुस्से का निराकरण किया जाए।, , इस तरह, जनजातीय आंदोलन समाजिक आंदोलनों का एक अच्छा उदाहरण है। पूर्व में कई पूर्वोत्तर क्षेत्रों ने भारत से अलग रहने की, प्रवृत्ति का प्रदर्शन किया था, किंतु उन्होंने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है तथा भारतीय संविधान के ढाँचे में अपनी पृथक, स्वायत्तता की माँग की है।, , 2. भारत में पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलनों के बीच अंतर करना कठिन है। चर्चा कीजिए।, उत्तर- भारत में पुराने तथा नए सामाजिक आंदोलनों के बीच अंतर :, , , , पुराने सामाजिक आंदोलन नए सामाजिक आदोलन, , , , *» नए सामाजिक आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के, दशकों में 1960-1970 के दशक के मध्य प्रकाश में, आए।, , *» इन आंदोलनों न केवल संकीर्ण वर्गीय मुद्दों को, , *» वर्ग आधारित-अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए उठाया, बल्कि एक बड़े सामाजिक समूहों के विस्तृत, एकजुट। तथा सर्वव्यापी मुद्दों को भी अपने आंदोलनों में, , * उपनिवेशवाद के विरोध में आदोलन। शामिल किया।, , « राष्ट्रवादी आंदोलन तथा एक राष्ट्र के रूप में लोगों का * अमेरिका की सेना वियतनाम के खिलाफ खूनी खेल, , एकजुट होना; जैसे-स्वतंत्रता आंदोलन। में संलिप्त थी।, , * राष्ट्रवादी आंदोलन, जिसने विदेशी शक्तियों तथा * पेरिस में विद्यार्थियों ने श्रमिकों के दल की हड़तालों में, विदेशी पूँजी के विरोध में सक्रियता दिखाई। शामिल होकर युद्ध के खिलाफ अपना विरोध, , * मुख्यतः साधन संपन्न तथा शासनहीन वर्गो के बीच जतलाया।, संघर्ष से संबंधित। मुख्य मुद्दा-शक्तियों का पुनर्गठन। * अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग के द्वारा नागरिक, अर्थात शक्तियों पर नियंत्रण कर उसे शक्तिमान लोगों अधिकार आदोलन चलाया गया।, से छीनकर शक्तिहीन लोगों को देना। श्रमिकों ने * अश्वेत शक्ति आदोलन।, , पूँजीपतियों के विरुद्ध गतिशीलता दिखाई। महिलाओं * महिलाओं के आदोलन। पर्यावरण संबंधी आदोलन।, , , , का पुरुषों के प्रभुत्व के प्रति संघर्ष आदि।, राजनीतिक दलों के संगठनात्मक ढाँचे के अंदर, क्रियाकलाप। जैसे-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने राष्ट्रवादी, , , , शक्तियों के पुनर्गठन के बजाय जीवन-स्तर के सुधार, पर अधिक जोर। जैसे-सूचना का अधिकार, पर्यावरण, की शुद्धता इत्यादि।
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डा का नेतृत्व किया। कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ चीन, , ने चीनी क्रांति का नेतृत्व किया।, * राजनीतिक दलों की भूमिका की ही प्रधानता रहती, , थी तथा गरीब लोगों की बातें प्रभावपूर्ण तरीके से नहीं, , सुनी जाती थीं।, , * इस तरह के आंदोलन लंबे समय तक राजनीतिक, दलों की छतरी के तले रहना पंसद नहीं करते। इसके, बजाय नागरिक सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर गैर, सरकारी संगठनों का निर्माण किया जाता है। ऐसा, माना जाता है कि गैर सरकारी संगठन अधिक सक्षम,, , * इनका संबंध सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के कम भ्रष्ट तथा स्वतंत्र होते हैं।, असमान वितरण को लेकर था तथा इन आदोलनों के * भूमंडलीकरण - लोगों की प्रतिबद्धता को आकार देना, | संस्कृति, मीडिया, पारराष्ट्रीय कंपनियों, विधिक, व्यवस्था-अंतर्राष्ट्रीयु इस कारण से कई सामाजिक, आदोलन अब अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण कर चुके हैं।, * आवश्यक तत्व-पहचान की राजनीति, सांस्कृतिक,, समग्रता, आकांक्षाएँ |, , यही प्रमुख तत्व हुआ करते थे।, , , , , , , , , , 3. पर्यावरणीय आंदोलन प्रायः आर्थिक एवं पहचान के मुद्दों को भी साथ लेकर चलते हैं। विवेचना कीजिए।, , उत्तर- पर्यावरणीय आंदोलन प्रायः आर्थिक एवं पहचान के मुद्दों को भी साथ लेकर चलते हैं। इसके अंतर्गत चिपको आंदोलन, पारिस्थतिकीय आंदोलन का एक उपयुक्त उदाहरण है। यह मिश्रित हितों तथा विचारधाराओं का अच्छा उदाहरण हैं। रामचंद्र गुहा की, पुस्तक 'अनक्वाइट वुड्स' के अनुसार गांववासी अपने गांवों के निकट के ओक तथा रोहडैड्रोन के जंगलों को बचाने के लिए एक, साथ आगे आए। जंगल के सरकारी ठेकेदार पेड़ों को काटने के लिए आए तो गाँववासी, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल थीं,, आगे बढ़े तथा कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गए। गाँववासी ईंधन के लिए लकड़ी, चारा तथा अन्य दैनिक आवश्यकताओं की, पूर्ति के लिए जगलों पर निर्भर थे। उसने गरीब गाँववासियों की आजीविका की आवश्कताओं तथा राजस्व कमाने की सरकार की, इच्छा के बीच एक संघर्ष उत्पन्न कर दिया। चिपको आंदोलन ने पारिस्थितिकीय संतुलन के मुद्दे को गंभीरतापूर्वक उठाया। जंगलों का, काटा जाना वातावरण के विध्वंस का सूचक है। इस प्रकार से, अर्थव्यवस्था, पारिस्थतिकी तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चिंताएँ, चिपको आदोलन का आधार थी।, , 4. कृषक एवं नव किसानों के आदोलनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।, उत्तर- कृषक एवं नव किसानों के आदोलनों के बीच अंतर :, , , , कृषक के आदोलन नव किसानों के आदोलन, , , , 1. यह औपनिवेशिक काल से पहले शुरू हुआ।, 2. किसान आदोलन यह आदोलन 1858 तथा 1914 के, बीच स्थानीयता, विभाजन और विशिष्ट शिकायतों से, , सीमित होने की ओर प्रवृत्त हुआ। 1. नया किसान आंदोलन 1970 के दशक में पंजाब तथा
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स्च्डन कुछ प्रसिद्ध आंदोलन निम्नलिखित है, , ., , 1859 की बंगाल में क्रांति जोकि नील की खेती के, विरुद्ध था।, , 1857 का दक््कन विद्रोह जोकि साहूकारों के विरोध, में था।, , बारदोली सत्याग्रह जोकि गाँधी जी द्वारा प्रारंभ किया, गया तथा भूमि का कर न देने से संबंधित आंदोलन, था।, , चंपारन सत्याग्रह (1817-18)-यह नील की खेती के, विरुद्ध आदोलन था।, , तिभागी आदोलन (1946-47), , तेलांगना आदोलन (1946-51), , , , तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ।, 2. (1) इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं, ये आदोलन क्षेत्रीय स्तर पर संगठित थे।, , आंदोलनों का दलों से कोई लेना-देना नहीं था।, , इन आंदोलनों में बड़े किसानों की अपेक्षा छोटे-छोटे, किसान हिस्सा लेते थे।, , प्रमुख विचारधारा - कड़े रूप में राज्य तथा नगर, विरोधी।, , माँग का केंद्रबिंदु - मूल्य आधारित मुद्दे।