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7(10७॥86 72011, , सरल अंक ज्योतिष, , 1. अंकों की उत्पत्ति, , अंक या संख्या का शब्द एवं क्रिया से घनिष्ट संबंध है। (0) शून्य निराकार ब्रह्म या, अनन्त का प्रतीक है। शून्य से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है एवं शून्य में ही सब कुछ विलीन हो, जाता है। यह शून्य सूक्ष्म से सूक्ष्मतर एवं वृहद से वृहदाकार है। हम जब भी अपनी दृष्टि, चारों ओर घुमाएंगे तो हमें सब कुछ गोल ही गोल दिखाई देता है। यह गोल ही विश्व है।, आकाश, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि सभी कुछ गोलाकार हैं | हमारे शरीर में स्थित विभिन्न द्वार, भी गोल ही हैं। इसी लिए शून्य की शक्ति सबसे बड़ी है और इस शून्य को हमारे, ऋषि-मुनियों ने खोजा, जिसे आज पूरा विश्व मानता है | हम आज कंप्यूटर के युग में पहुँच, गये हैं और इस कंप्यूटर का आधार भी हमारा शून्य ही है, जिसे कप्यूटर की भाषा में डॉट, [001] कहा जाता है।, , शून्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई और सृष्टि एक कहलायी अर्थात इस सृष्टि को, संचालित करने वाली कोई एक शक्ति है, जो अदृश्य है एवं विधिपूर्वक इस सृष्टि का, संचालन कर रही है| उसे हमने ब्रह्म की संज्ञा प्रदान की | अतः ब्रह्म एक है एवं उसे पुकारने, के नाम अनेक हैं। मानव ने जब आँखें खोलीं तो उसे सूर्य एवं चन्द्र दो तारे आकाश में, दिखाई दिये। अतः प्रकाशित ग्रह दो ही हैं, तीसरा नहीं है। जो नियमित मनुष्य का मार्ग, प्रदर्शन करने की क्षमता रखता हो। सूर्य नित्य दिन को उदय होता है। अतः उसे प्रथम, स्थान प्राप्त हुआ और एक संख्या का प्रतिनिधित्व मिला | अंक एक के स्वामी सूर्य का आत्मा, से संबंध है। यह व्यक्ति या समष्टि की आत्म शक्ति का ज्ञान कराता है।, , चन्द्रमा ने रात बनायी और दो की संख्या चन्द्रमा की हुई | चन्द्र का भौतिक सुखों, से संबंध है। यह मानव को मन की विचार शक्ति प्रदान करता है। सूर्य को पुरुष ग्रह के, रूप में स्वीकार किया गया। जिस प्रकार पुरुष एक है एवं द्वितीय नारी है। नारी के दो रूप, प्रत्यक्ष्य हैं। एक कन्या रूप, दूसरा पत्नी रूप। दोनों जगह उसकी अलग पहचान है। चन्द्र, को स्त्री ग्रह माना गया और चन्द्र की कलाओं की तरह ही नारी की कलाएं हैं। जिस तरह, चन्द्र सत्ताईस दिन में सभी नक्षत्रों का भोग करता है उसी तरह नारी भी सत्ताईस दिन के, पश्चात शुद्ध होती है।, , 3, ४७/७७.पिपा8७००1।1ा7]0॑8.007 ४७४७४५४४.॥४०७०।७.०017 ७४७४५४.।७०.०४॥1.6017
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7(10७॥86 72011, , सरल अंक ज्योतिष, , जब मानव ने आकाश प्रथ्वी एवं जल अथवा समुद्र को देखा तो उसे ब्रह्म की शक्ति, का ज्ञान हुआ और तीन की संख्या प्रचलन में आयी | इसी लिए तीन के अंक को विस्तार, का अंक माना गया और इसका स्वामित्व गुरु को प्रदान किया गया। गुरू का आत्मा से, संबंध है। यह सृष्टि के फेलाव तथा आत्मा के प्रसार व विस्तार के ज्ञान का बोध कराता है।, हमारे तीन ही देव हैं जो त्रिशक्ति के अधिष्ठाता हैं | इनमें तीन गुण समाये हुए हैं| सतोगुणी, ब्रह्मा, रजोगुणी विष्णु एवं तमोगुणी शिव | इनकी तीन शक्तियाँ उत्पत्ति, पालन एवं संहार हैं ।, अथवा इच्छा ब्राह्मी शक्ति, क्रिया वैष्णवी शक्ति एवं गौरी शक्ति ज्ञान है। यही चन्द्र, सूर्य, एवं अग्नि हैं | बचपन जवानी और बुढ़ापा भी यही है | बचपन में शरीर चन्द्र कलाओं की तरह, विकसित होता है। जवानी में सूर्य की तरह प्रकाशित एवं बृद्धावस्था में अग्नि की ओर उन्मुख, होता है। शरीर में तीन ही प्रमुख नाड़ी इड़ा पिंगला सुषुम्ना हैं। मनुष्य के तीन ही कर्म हैं, संचित, प्रारब्ध एवं आगामी।, , जब उसने चारों ओर नजर घुमायी तो उसे चार दिशाएं दिखाई दीं, जिससे चार की, संख्या उदित हुई। यही चारों दिशाएं हमारे चारों वेदों का, चारों उप वेदों का, चारों तरफ, के आदमियों का, अर्थात चारों वर्णो का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसे राहू या हर्षल ग्रह के, नाम किया गया, जो परिवर्तन, आक्रामकता का द्योतक है। मानव पर जब भी विपत्ति आती, है चारों ओर से ही आती है। हर्ष का भौतिक सुखों से संबंध है। यह भौतिक जगत में, शरीर को जीवनी शक्ति प्रदान करता है | मनुष्य की जाग्रत आदि चार अवस्थाएं इससे प्रकट, होती हैं। चारों धर्म, चारों तीर्थ इसी संख्या में समाहित हैं| देह चार प्रकार की होती है, उद्विद वृक्ष, स्वेदज कृमि कीट, अण्डज सर्प मछली पक्षी एवं जरायुज मनुष्य | अन्नमय,, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय यही हमारे चार कोष हैं जो मानव शरीर में स्थित हैं।, , इसके बाद मानव जीवन ने अपनी मूलभूत आवश्यकताओं में पाँच तत्वों को पहचाना, आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं प्रथ्वी इनके गुणों को शब्द, स्पर्श रूप, रस एवं गंध को जाना।, उसने इनके अलग-अलग पाँच देव निरूपित किये और पाँच के अंक की पहचान हुई | देव, विद्या, बुद्धि एवं वाणी के दाता हैं | अतः पाँच की संख्या का आधिपत्य युवराज बुध को प्रदान, किया गया। बुध का संबंध बौद्धिक सुखों से है। यह बुद्धि एवं विवेक का ज्ञान कराता है।, पाँच की संख्या हमारी पंच शक्ति, पंच रत्न, सम्मोहनादि पंच वाण, पंच कामदेव, पंच कला,, पंच मकार, पंच भूत, पंच ऋचा पंच प्राणों आदि का सृजन करती है।, , व, , ४७/७७.पिपा8७००1।1ा7]0॑8.007 ४७४७४५४४.॥४०७०।७.०017 ७४७४५४.।७०.०४॥1.6017